मेरे अपने संबंधियों को मुझसे दो शिकायतें अक्सर रहती है, पहला कि मैं फोन नहीं करता और दूसरा कि मैं सामाजिक रिश्ते-नातों से दूर होता जा रहा हूं। दोनों ही शिकायतें वाजिब है। पहली शिकायत का काट मेरे पास है। मैं फोन पर बात करने में असहज महसूस करता हूं। मैं बाबूजी-मां से भी फोन पर कम ही बातें करता हूं, ये सारी जिम्मेदारियां मेरी पत्नी निभा रही हैं।
मैं चैटिंग पर सबसे अधिक सहज महसूस करता हूं। मेरे बहनोई मदन झा इससे शायद इत्तेफाक रखते होंगे। मैं उनसे उनके ब्लैकबेरी पर सबसे अधिक और खुलकर बातें करता हूं। कल दोपहर उन्होंने मेरी हरी बत्ती (गूगल चैट) पर टोका, तो शब्दों में बातें फूट पड़ी। वे इन दिनों अपने गांव सरिसब-पाही गए हुए हैं, कुछ काम से। लेकिन मैंने कभी भी सरिसब को गांव नहीं माना, वो जगह मेरे लिए किसी शहर से कम नहीं है लेकिन कल दोपहर बातचीत के दौरान उन्होंने टाइप कर भेजा कि Aab sarisab seho village bani gale. No trafic as new express highway opened... (अब सरिसब भी गांव बन गया है, नया एक्सप्रेस हाइवे खुलने से ट्रैफिक की कोई समस्या नहीं रही) उनके इस स्टेटमेंट से जेहन में बसी कई यादें धक-धककर उभरने लगी।
सरिसब पाही में ही मेरे नानाजी का घर भी है, मतलब ननिहाल। पीले रंग का एक विशाल कैंपस वाला घर। हमसब मैथिली में इसे मातृक कहते हैं। मां का जन्म यहीं हुआ, मेरी तीनों बहनों का भी जन्मस्थान सरिसब ही है। यहीं मेरे नानाजी और नानी मां ने अंतिम सांसे लीं। शहनाई के सुर पहली बार यहीं सुना। ममेरी बहनों की शादी में।
मैं बहुत कम अपने नाना-नानी के घर जा सका हूं, मामाजी सब आज भी उलाहना देते फिरते हैं। दरअसल, हॉस्टल में रहने की वजह से मुझे छुट्टियों में पूर्णिया में अपने घर पर लाया जाता था। वो भी गिनती के दिनों के लिए। अंतिम बार सरिसब पाही नानी मां के श्राद्ध में गया था, 2006।
सरिसब पाही का मतलब मेरे लिए अच्छी मिठाई और कमाल के गप्प के शौकिन लोग हैं। दीदी के शादी के वक्त हमने सरिसब का खूब मजा उठाया था। दीदी का ससुराल मलतब मदन झा का पुश्तैनी घर सरिसब के हर्ट में हैं, आप इसे सिविल लाइंस टाइप का इलाका कह सकते हैं। आगे चौड़ी सड़क, बाजार, हटिया, एक सिनेमा हॉल भी, बड़ा सा पोखर (शायद महाराज पोखर..)
गांव किस तरह कस्बा से शहर बनता है, इसे मैंने सरिसब से ही जाना। यहां एक इलाहाबाद बैंक है, इसमें मेरे बाबूजी का खाता भी है, बैंक में चेक से पैसे निकालने का पहला अनुभव मुझे सरिसब ने ही दिय़ा। मैं उस वक्त पांचवी में पढ़ाई कर रहा था, हम सब किसी की शादी में गांव गए थे। मेरा पुश्तैनी घर सरिसब से कुछ दूरी पर है-इशाहपुर।
बाबूजी को पैसे निकालना था, सो वे मुझे भी अपनी काली राजदूत मोटरसाइकिल से बैंक ले गए। हॉस्टल में रहने की वजह से बैंक से कोई नाता नहीं था। उन्होंने चेक काटा और काउंटर से पैसे उठाए। अभी भी याद है, बेहद साफ-सुथरा बैंक परिसर और लोग भी अच्छे। उन्हें बैंक में जमाई का आदर दिया गया (ससुराल होने की वजह से)। बैंक मैनेजर ने उनके लिए पान मंगाया। मुझसे पढाई-लिखाई की औपचारिक बातचीत की,शायद कुछ गणित के सवाल भी पूछा गया था..।
कल जब मदन झा ने जब यह लिखा कि 'आब सरिसब सेहो विलेज बनि गेले...' तो ऐसी ही कई यादें मन की दुकान से पॉलीथिन में बाहर आने लगी। मुझे नहीं पता है कि मैंने सरिसब को शहर समझने की भूल की है या सरिसब ने खुद को कस्बाई- शहर समझने की भूल की, लेकिन मदन झा की बातों से यह अहसास जरूर हुआ कि एक ग्रामीण, जो गांव को गांव ही रहने देना चाहता है, उसकी दर्द क्या है।
यहां समाजशास्त्र की कोई थ्योरी काम नहीं करती है। उस प्रवासी ग्रामीण की बस यही इच्छा है कि जब वह गांव आए तो उसे गांव का ही अहसास मिले। जब मैंने उनसे पूछा कि अभी क्या कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा- Bhat-macch kha ke paral chi. paper saab padi raha chi. Hawa chali rahal achi. Mukhiya election prachar k geet maithli me aawaj aabi rahal achi (भात-माछ खा क पड़ल छी, पेपर सब पढि रहल छी, हवा चलि रहल अछि, मुखिया इलेक्शन प्रचार क गीत मथिली में.. आवाज आबि रहल अछि....)
दूसरी शिकायत (मैं सामाजिक रिश्ते-नातों से दूर होता जा रहा हूं) के बारे में फिर कभी..।
सरिसब पाही में ही मेरे नानाजी का घर भी है, मतलब ननिहाल। पीले रंग का एक विशाल कैंपस वाला घर। हमसब मैथिली में इसे मातृक कहते हैं। मां का जन्म यहीं हुआ, मेरी तीनों बहनों का भी जन्मस्थान सरिसब ही है। यहीं मेरे नानाजी और नानी मां ने अंतिम सांसे लीं। शहनाई के सुर पहली बार यहीं सुना। ममेरी बहनों की शादी में।
मैं बहुत कम अपने नाना-नानी के घर जा सका हूं, मामाजी सब आज भी उलाहना देते फिरते हैं। दरअसल, हॉस्टल में रहने की वजह से मुझे छुट्टियों में पूर्णिया में अपने घर पर लाया जाता था। वो भी गिनती के दिनों के लिए। अंतिम बार सरिसब पाही नानी मां के श्राद्ध में गया था, 2006।
सरिसब पाही का मतलब मेरे लिए अच्छी मिठाई और कमाल के गप्प के शौकिन लोग हैं। दीदी के शादी के वक्त हमने सरिसब का खूब मजा उठाया था। दीदी का ससुराल मलतब मदन झा का पुश्तैनी घर सरिसब के हर्ट में हैं, आप इसे सिविल लाइंस टाइप का इलाका कह सकते हैं। आगे चौड़ी सड़क, बाजार, हटिया, एक सिनेमा हॉल भी, बड़ा सा पोखर (शायद महाराज पोखर..)
गांव किस तरह कस्बा से शहर बनता है, इसे मैंने सरिसब से ही जाना। यहां एक इलाहाबाद बैंक है, इसमें मेरे बाबूजी का खाता भी है, बैंक में चेक से पैसे निकालने का पहला अनुभव मुझे सरिसब ने ही दिय़ा। मैं उस वक्त पांचवी में पढ़ाई कर रहा था, हम सब किसी की शादी में गांव गए थे। मेरा पुश्तैनी घर सरिसब से कुछ दूरी पर है-इशाहपुर।
बाबूजी को पैसे निकालना था, सो वे मुझे भी अपनी काली राजदूत मोटरसाइकिल से बैंक ले गए। हॉस्टल में रहने की वजह से बैंक से कोई नाता नहीं था। उन्होंने चेक काटा और काउंटर से पैसे उठाए। अभी भी याद है, बेहद साफ-सुथरा बैंक परिसर और लोग भी अच्छे। उन्हें बैंक में जमाई का आदर दिया गया (ससुराल होने की वजह से)। बैंक मैनेजर ने उनके लिए पान मंगाया। मुझसे पढाई-लिखाई की औपचारिक बातचीत की,शायद कुछ गणित के सवाल भी पूछा गया था..।
कल जब मदन झा ने जब यह लिखा कि 'आब सरिसब सेहो विलेज बनि गेले...' तो ऐसी ही कई यादें मन की दुकान से पॉलीथिन में बाहर आने लगी। मुझे नहीं पता है कि मैंने सरिसब को शहर समझने की भूल की है या सरिसब ने खुद को कस्बाई- शहर समझने की भूल की, लेकिन मदन झा की बातों से यह अहसास जरूर हुआ कि एक ग्रामीण, जो गांव को गांव ही रहने देना चाहता है, उसकी दर्द क्या है।
यहां समाजशास्त्र की कोई थ्योरी काम नहीं करती है। उस प्रवासी ग्रामीण की बस यही इच्छा है कि जब वह गांव आए तो उसे गांव का ही अहसास मिले। जब मैंने उनसे पूछा कि अभी क्या कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा- Bhat-macch kha ke paral chi. paper saab padi raha chi. Hawa chali rahal achi. Mukhiya election prachar k geet maithli me aawaj aabi rahal achi (भात-माछ खा क पड़ल छी, पेपर सब पढि रहल छी, हवा चलि रहल अछि, मुखिया इलेक्शन प्रचार क गीत मथिली में.. आवाज आबि रहल अछि....)
दूसरी शिकायत (मैं सामाजिक रिश्ते-नातों से दूर होता जा रहा हूं) के बारे में फिर कभी..।
The Wynn Resort Spa Casino, Las Vegas, NV Jobs - KTNV
ReplyDeleteLocated in 화성 출장샵 Las Vegas Strip, 영주 출장마사지 the luxurious Wynn Tower Suites offer 강릉 출장안마 not only the ultimate 동두천 출장마사지 in intimate hotel experiences but also the amenities to 순천 출장마사지 round out